Saurabh Patel

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१६- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १६


उसके गम के बिना तो ये शराब भी पानी हो जाए
बस छूने से उन जुल्फों को नई हमारी ज़वानी हो जाए

आशिकी उतनी ही करो जितनी तुम भुला पाओ
इसे इतना भी मत करो कि याद वो मुंह जुबानी हो जाए

आवारा है शहर के कई लड़के उस लड़की के लिए 
गर वो छोड़ दे शहर तो कितने लड़के खानदानी हो जाए

वो साथ नही है तो क्या हुआ रास्ते और भी है
क्यूं न किसी नए शख्स से मुहब्बत पुरानी हो जाए

सुनने वालों "सौरभ" से आज कोई फरमाइश न करना 
आज की शाम बस हमारी अधूरी कहानी हो जाए।

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12 Comments

Supriya Pathak

17-Sep-2022 11:43 PM

Achha likha hai 💐

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Saurabh Patel

18-Sep-2022 11:06 AM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Suryansh

17-Sep-2022 07:50 PM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

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Saurabh Patel

17-Sep-2022 08:01 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Raziya bano

17-Sep-2022 09:07 AM

Nice

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Saurabh Patel

17-Sep-2022 09:44 AM

Thanks

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